दीपावली :
दीपावली भारत का सर्वप्रिय त्योहार है। त्योहारों की भूमि माने जाने वाले भारत में दीवाली का अपना विशिष्ट महत्व और उल्लास होता है। इन्हीं त्योहारों में से एक है दीपावली, जिसे हम दीवाली के नाम से भी जानते हैं। दीपावली का पर्व पूरे देश के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। इस पर्व का मुख्य संदेश बुराई पर प्रकाश की जीत और अज्ञान पर ज्ञान का पश्चिम फहराने जैसा है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का त्योहार मनाया जाता है, जब चारों ओर घोर अंधेरा होता है। इस समय में दीप जलाने से केवल प्रकाश का संचार ही नहीं होता, बल्कि यह सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का चिन्ह भी होता है।
दीपावली का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व :
दीपावली का पर्व धार्मिक और सांस्कृतिक नजरिए से वहुत महत्व है। यह त्योहार मुख्य रूप से भगवान श्रीराम के रावन को मार कर अयोध्या वापसी का उत्सव है। मानयता है कि जब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने घी के दीये जलाए थे तब पूरा नगर प्रकाशमय हो गया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है, और हर वर्ष इस दिन हम पटाखों और दीपों से दीपावली मनाते हैं।
सिख धर्म में दीपावली का विशेष महत्व:
‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाया जाता है दीवाली का त्योहार सिख धर्म में। इस दिन सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद जी को मुगलों द्वारा ग्वालियर के किले से रिहा किया गया था। जब गुरु हरगोबिंद जी को रिहा किया गया, तो उन्होंने 52 अन्य राजाओं की स्वतंत्रता की भी मांग की थी, जो मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा कैद किए गए थे। उनकी इस उदारता के कारण जब 52 अन्य राजाओं को भी छोड़ दिया गया तो यह दिन बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में इस अवसर पर विशेष रूप से दीपमाला और सत्संग का आयोजन किया जाता है, जहाँ हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और दीये जलाते हैं, और खूब पटाखे चलाते हैं। तभी तो अमृतसर की दीपावली के लिए पंजाब के लोगों में यह बात काफी लोकप्रिय है कि;
“दाल रोटी घर दी, दीवाली अमृतसर दी”
सिख धर्म में दीवाली का यह पर्व न्याय, निडरता और दूसरों की भलाई के लिए खड़े होने के संदेश को उजागर करता है।
जैन धर्म में दीपावली का विशेष महत्व:
जैन धर्म में भी दीपावली का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान महावीर ने मोक्ष प्राप्त किया था, जो जैन धर्म के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
दीपावली के पांच दिन:
दीपावली का त्योहार खास तौर पर हिन्दु धर्म में एक दिन का नहीं, बल्कि पांच दिनों तक मनाया जाता है। हर दिन का अपना एक विशेष महत्व होता है और इसके पीछे विभिन्न धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं।
1. धनतेरस:
दीपावली के पर्व का पहला दिन धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन धन के देवता भगवान कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा की जाती है। लोग इस दिन सोने, चांदी के गहने और बर्तनों की खरीदारी करते हैं। यह भी मानयता है कि इस दिन झाङू भी खरीदना चाहिए। झाङू सफाई का प्रतीक है, और सफाई माता लक्ष्मी जी को अत प्यारी है । यह दिन स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना का प्रतीक है।
2. छोटी दीपावली:
दीपावली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। जब नरकासुर का आतंक बहुत बढ़ गया तब जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता व ऋषि-मुनि भगवान श्री कृष्ण के पास सहायतार्थ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें आश्वासन दिया कि नरकासुर की मौत का समय आ गया है। लेकिन नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी माता सत्यभामा को सारथी बनाया और उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध कर दिया। इस लिए यह दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। यह दिन नरक चौदस के नाम से भी प्रसिद्ध है।
3. दीपावली:
दिपावली के मुख्य त्योहार से पहले धरों की साफ-सफाई की जाती है, क्योंकि हिन्दु धर्म के अनुसार मां लक्षमी जी को साफ-सफाई अधिक पसंद है। इस दिन मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन घरों में दीयों की पंक्तियां सजाई जाती हैं और आकाश में आतिशबाजी और पटाखों की आवाज की गूंज उठती है।
4. गोवर्धन पूजा:
हिन्दु धर्म के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने लोगों को देवराज इंद्र की पूजा ना करकर गोवर्धन पूजा करने को कहा था जिससे क्रोधित होकर इंद्र ने बहुत भारी आंधी तुफान चलाया और वृंदावन वासियों को बहुत परेशान किया। सारे वृंदावन में पानी ही पानी हो गया । तब भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली से उठाकर लोगों की रक्षा की । जब भगवान कृष्ण ने इंद्र को अपना विराट रूप दिखाया तब उन्होंने भगवान से माफी मांगी । तब से गोवर्धन की पूजा की जाती है और अन्नकूट का आयोजन किया जाता है।
5. भाई दूज:
भाई दूज त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है । इस दिन बहनें अपने भाई के माथे पर सिंदूर, चन्दन, अथवा केसर का टिका लगाती हैं तथा खाने के लिए मिठाईयां और खाद्य पदार्थ देती हैं । बदले में भाई अपनी बहनों को उपहार स्वरूप धन एवं अन्य जरूरत की वस्तुएं देकर उनकी इज्जत और मान-सम्मान का बच्चन देते हैं ।
दीपावली का सामाजिक और आर्थिक पहलू:
दीपावली धार्मिक पर्व ही नही बल्कि इसका सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार लोगों को एक साथ करता है। परिवारजन, दोस्त और रिश्तेदार एक साथ समय बिताते हैं, एक-दूसरे को शुभकामनाएं देने के साथ-साथ मिठाईयों भी बांटने हैं । इस समय लोग घरों और अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखते हैं। इस पर्व के दौरान घरों को सजाने के लिए पेंट करवाते हैं और रंगों से रंगोलियों का निर्माण भी करते हैं, जो हमारी भारतीय कला और संस्कृति का और चार चांद लगाते हैं
दीपावली का समय बाजारों में काफी भीड़ होती, जहाँ व्यापारियो और ग्राहकों का तांता लगा रहता है। लोग नये कपड़े, बर्तन, मिठाईयां, गहने, दिये, पटाखे ईत्यादि खरीदारी में व्यस्त होते हैं। धनतेरस के दिन तो बाजारों में खूब भीड़ रहती है।
‘ग्रीन दीपावली’
पिछले कुछ सालों से लोग वातावरण के प्रति काफ़ी सचेत होकर पर्यावरण संरक्षण के हित में आगे आकर बात कर रहे हैं। क्योंकि दीपावली के समय चलाए जाने वाले पटाखों से बहुत प्रदूषण होता है। इसीलिए हमें “ग्रीन दीपावली” के चलन को आगे बढ़ाते हुए पारम्परिक रूप से दिये जलाकर तथा मीठाईयां बाँटकर इस त्योहार को प्यार पूर्वक मनाना चाहिए।
उपहार और मिठाइयां:
दीपावली के अवसर पर लोग अपने प्रियजनों को उपहार स्वरूप मिठाईयां, ड्राई फ्रूट्स, आभूषण कपड़े व नगदी का आदान-प्रदान करते हैं। मिठाईयों में विशेष रूप से जलेबी, काजू कतली, लड्डू, सोनपापढ़ी, बर्फी आदि का वितरण विशेष रूप से किया जाता है।
लक्ष्मी पूजा :
दीपावली को मुख्य रूप से मां लक्षमी जी की पूजा की जाती है। सबसे पहले पूजा स्थल को साफ किया जाता है। फिर वहाँ पर भिन्न प्रकार के रंगों से रंगोली बनाई जाती है। रंगोली के पास विशेष तौर पर मां लक्ष्म जी की चरण पादुका बनाई जाती है। भगवान गणेश जी की पूजा का विधान सर्वप्रथम है और वह विघ्नहर्ता भी है। उसके बाद माता सरस्वती तथा माता लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। कुछ लोग इस दिन नया झाङू लेकर पूजा स्थल के पास रखते हैं, क्योंकि झाङू सफाई का काम करता है। मान्यता है कि जहां साफ-सफाई होती है वहाँ माता लक्ष्मी का वास होता है। उल्लू के गुणों से प्रसन्न होकर माता लक्ष्मी ने उसे अपनी सवारी के रूप में चुना तब से माता लक्ष्मी को उलूक वाहिनी भी कहा जाता है। माता लक्ष्मी की सवारी उल्लू को भारतीय संस्कृति में शुभता और धन संपत्ति का प्रतीक माना जाता है।
खराब आदतें :
आजकल कुछ लोग दीपावली के दिन जुॅआ खेलते हैं, दारू पीते हैं तथा कुछ लोग घर में मांस भी पकाते हैं, जो कि हिन्दु धर्म के अनुसार सरासर गलत है। इसकी जगह पर घर में अपने परिवार के लिए मिठाईयां, कपड़े तथा घर में उपयोग होने वाला सामान लेकर जाना चाहिए जिस से घर पर खुशी का माहौल बनाया जा सकता है और माता लक्षमी की कृपा भी बनी रहती है।
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