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भारत के 10 अजूबे India’s 10 wonders

भारत के 10 अजूबे कौन-कौन से हैं/Which are the India’s 10 wonders?

अजूबे की नगरी भारत यहाँ देवी-देवताओं, पीर-फकीर, पहाड़, नदियों, और जंगलों की धरती है माना जाता है, वहीं कुछ ऐसी जगह भी हैं जो कि मानव निर्मित होते हुए भी हमें अचंभित करती हैं, जिसे हम अद्भुत/अजूबे कहते हैं । इस लेख में हम भारत के 10 अद्भुत और महत्वपूर्ण स्थानों का वर्णन करेंगे :

1. प्रेम का प्रतीक : ताजमहल 

भारत के 10 अजूबे

ताज महल भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 242 किलोमीटर की दूरी पर आगरा शहर में स्थित एक प्रसिद्ध भारतीय अजूबा है। 1632-1653 मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में ही इसका निर्माण करवाया था। यह सफेद संगमरमर का बना है। मुमताज महल से असीम प्रेम के कारण इसे “प्रेम का प्रतीक” कहा जाता है। ताजमहल को भारत के प्रमुख अजूबे का दर्जा दिया गया है।

आर्किटेक्चर:

यहाँ की प्राकृतिक हरियाली, फव्वारे और सफेद संगमरमर सभी इसकी खूबसूरती बढ़ाते हैं। प्रमुख धुरी पर गुंबद है जिसके चारों तरफ चार अष्टकोणीय मीनार हैं। रात में चाँदनी ताज महल की खूबसूरती में चमक जोड़ती है जो इसकी आभा को और भी चार-चांद लगाती है। लाखों पर्यटक इसकी सुंदरता को देखने भारत और विदेशों से आते हैं। ताज महल न केवल भारत के लोगों के लिए एक राष्ट्रीय स्मारक है बल्कि यह दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेम का प्रतीक भी है। 1982 में, यूनेस्को ने इसे अपनी विश्व धरोहर अजूबे स्थल की सूची में शामिल किया।

2. स्वर्ण मंदिर (हरिमंदिर साहब)

पंजाब के अमृतसर शहर में “स्वर्ण मंदिर” जिसे ’हरिमंदिर साहब’ भी कहा जाता है, भारत का दूसरा अजूबा है जो अमृतसर एयरपोर्ट से 13 किलोमीटर, अमृतसर रेलवे-स्टेशन से 2 किलोमीटर और अमृतसर ISBT से मात्र 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

धार्मिक महत्ता:

सिख धर्म में स्वर्ण मंदिर सिखों के सबसे बढ़े पवित्र तीर्थस्थल के रूप में माना जाता है। महाराजा रणजीत सिंह ने उपरी आधे भाग को लगभग 400 किलो सोने के पत्रों से बनवाया था, लेकिन आज यह पूरा ही सोने के पत्रों से मुकम्मल करवाया गया है। इसके इलावा चौथे गुरु श्री गुरु रामदास द्वारा इसके चारों तरफ सरोवर का निर्माण करवाया जिसे “पवित्र सरोवर” कहा जाता है। सरोवर के पास ही एक बेर का पेड़ है जिसे “बेरी साहब” या “दुख भंजन” कहते हैं । ‘दुख भंजन’ अर्थात दुखों को दूर करने वाला कहते हैं। मान्यता है कि यहाँ स्नान करने से दुखों का अंत होता है।

स्वर्ण मंदिर की खूबसूरती:

हरिमंदिर साहब 2 मंजिल इमारत है जिसकी प्रमुख मंजिल में ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ है जहां निरंतर गुरुवाणी का पाठ होता है और लाखों की संख्या में संगत (श्रद्धालू) नतमस्तक होते हैं। मंदिर की दूसरी मंजिल पर गुटका साहब (धार्मिक पुस्तकें) रखी होती है जहां कोई व्यक्ति भी इस पुस्तकों द्वारा मंदिर और सिख इतिहास के बारे में जानकरी ले सकता है।

मंदिर की बाहरी दीवारों पर सोने के पत्र चढ़ाये हुए है जिस कारण इसे स्वर्ण मंदिर कहते है। दीवाली पर मंदिर की खूबसूरती किसी स्वर्ग से कम नहीं होती। स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन लाखों श्रद्धालू लंगर ग्रहण करते हैं। दुनियाभर में लोग स्वर्ण मंदिर को Golden Temple के नाम से जानते हैं जिस से इस अजूबे की आभा और भी अद्वितीय बनाती है।

3. कुतुब मीनार:

10 अजूबे

कुतुब मीनार, भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित सबसे लोकप्रिय ऐतिहासिक अजूबे में से एक है। इसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 12वीं सदी में शुरू किया गया था, जो दिल्ली सल्तनत का शासक था। यह एक मीनार है जो भारतीय इस्लामी वास्तुकला शैली का उदाहरण प्रस्तुत करती है; इस मीनार को मीनार के रूप में जाना जाता है।

इतिहास और निर्माण:

कुतुब मीनार का निर्माण काल 1193-1368 के बीच हुआ। कुतुब ने इस परियोजना को शुरू किया, लेकिन इसे उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने 1368 में पूरा किया। मीनार की ऊँचाई 73 मीटर है और इसमें पांच मंजिलें हैं, प्रत्येक मंजिल एक बालकनी के साथ बनी हुई है। मीनार बनाने के लिए लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया था, जिसने इसे एक अजूबे की शकल बनाने में  महत्वपूर्ण योगदान है।

वास्तुकला:

कुतुब मीनार का निर्माण इस्लामी और हिंदू दोनों प्रभावों का संगम है। मीनार पर कुरान के आयतें उकेरी गई है, जिससे इसके इस्लामी महत्व का संकेत मिलता है। कुतुब मीनार के परिसर में कुतब-ए-इस्लाम मस्जिद और लौह स्तम्भ है, जो इसकी स्थलीय महिमा को और भी बढ़ाते हैं और इसे अजूबा बनाते हैं।

दिल्ली के पर्यटकों के लिए आज भी कुतुब मीनार एक महत्वपूर्ण आर्किटेक्चर है। इसकी ताकत और इसकी आकर्षण देखते हुए यहाँ पर हर साल लाखों टूरिस्ट आते हैं। यहाँ पर कुतुब मीनार की महान वास्तुकला की पहचान इस मीनार का एक अजूबे की तरह दिखना है। इस प्रकार कुतुब मीनार भारत की आभा है।

4. खजुराहो के मंदिर: 

खजुराहो के मंदिर भारतीय सस्कृति  और  मूर्ति कला का अद्भुत संगम है। मध्य प्रदेश में स्थित इन मंदिरों का निर्माण 10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच चंदेल राजाओं ने करवाया था। इन मंदिरों की विशेषता इनकी बारीक नक्काशी है। मुख्य मूर्तियों के साथ-साथ धार्मिक कथाओं का सुंदर वर्णन किया गया है जो इसे एक अजूबे की आभा प्रदान करती हैं।

निर्माण कार्य:

खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईस्वी से 1050 ईस्वी के बीच हुआ था। इसका निर्माण मुख्यतः चंदेल राजाओं द्वारा किया गया था, जो राजपूत वंश के शासक थे। कुल मिलाकर खजुराहो में लगभग 85 मंदिर थे जिनमें से अब केवल 20 मंदिर ही संरक्षित है जो अजूबे के रूप में माने जाते हैं।

वास्तुकला:

खजुराहो में गर्भ ग्रह, मंडप, शिखर और प्रवेश द्वार आदि प्रमुख काम हैं। इनमें बारीक नक्काशी और पत्थरों पर उकेरी गई जटिल मूर्तियां शामिल हैं जो ये मंदिर ओर भी शोभायमान होते हैं। हर वास्तु संरचना एक अजूबे की तरह प्रतीत होती है। प्रत्येक मंदिर का शिखर उच्च और भव्य है जैसे आकाश को छोता दिखाई देता है, और इसे वास्तुकला के अजूबे समझते हैं। इन मंदिरों में शिव, विष्णु, सूर्य और जैन धर्म के देवताओं की मूर्तियाँ प्रमुख हैं और इसे धार्मिक आस्था का रूप देते हैं।

कामुक मूर्तियां और उनकी महत्ता:

यह मंदिर मुख्य रूप से कामुक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं। इस मंदिर के भीतर बड़े भाग में अक्सर वही मूर्तियाँ रखी रहती हैं, जिनकी विशेषता यह है कि उनके बीच एक ही दृश्य का पुनरावरण किया होया है, क्या वहीं वह प्रेम, कला, उत्सव और जीवन को बहुत कुछ खिलाती है, न कि वह कामुकता ही उनके प्रदर्शन की गतिविधि करती है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

खजुराहो के मंदिरों में मुख्य रूप से शिव, विष्णु और जैन तीर्थंकरों की पूजा की जाती है जो हिंदू और जैन धर्म की सभ्यता को उजागर करती है। धार्मिक दृष्टिकोण से यह मंदिर भारतीय दर्शन और अध्यात्म का प्रतीक है जो योग, ध्यान और अच्छे शासन की परंपरा को दर्शाते हैं। इस प्रकार यह मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के एक अजूबे के रूप में उच्च स्थान रखते हैं।

पर्यटन और विश्व धरोहर:

खजुराहो के मंदिर भारत के प्रमुख प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक हैं, यहां हर साल देश-विदेश से लाखों पर्यटक आते हैं। यूनेस्को ने इन्हें 1986 में विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया जिससे इनका संरक्षण और महत्व और भी बढ़ गया। खजुराहो मंदिर की अद्वितीयता और खूबसूरती इसे एक अजूबे का दर्जा देती है जो भारत की संस्कृति और कला को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करती है।

 5. अजंता-एलोरा की गुफाएं: 

अजंता और एलोरा की गुफाएं भारतीय कला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यहां की मूर्तियां, चित्रकला और नक्काशी उस समय के धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक जीवन को प्रस्तुत करती हैं। युनेस्को ने अजंता-एलोरा की गुफाओं को 1983 में विश्व धरोहर घोषित किया जो उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्वता को और भी स्पष्ट करता है।

अजंता और एलोरा भारत की आधुनिक सांस्कृतिक धरोहर में एक परंपरागत गुफाएं हैं जहाँ जी जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण अजीब स्थल हुआ करते हैं। यह गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है और भारतीय सभ्यता, इतिहास और सांस्कृतिक विकास का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है। अजंता-एलोरा की गुफाओं में बौद्ध, हिन्दु और जैन धर्म की कलाकृतियां की झलक देखने को मिलती है जो इसे अजूबे बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

अजंता की गुफाएं:

इन छोटी-छोटी अजब-गजब गुफाओं का निर्माण किए बिना यह अजूबा यानि अजंता की गुफाएं जो कि लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक की मानी जाती है, बुद्ध धर्म से संबंधित 29 गुफाएं हैं। यह गुफाएं अपने चित्रों और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है जो भगवान बुद्ध के जीवनकाल की कथाओं पर आधारित है। यह प्राचीन भारतीय कलाकारों की उच्च कला-सिद्धि का प्रमाण है और सच्चे मायनों में कला के अजूबे है।

अजंता की गुफाओं में भगवान बुद्ध की जीवन की घटनाओं को जीवंत तरीके से चित्रित किया गया है। गुफा नंबर 1 और 2 के भीतरी चित्र विशेष रूप से प्रसिद्ध है जिनमें बुद्ध की महान परंपरा और उनके उपदेशों का चित्रण है। इन चित्रों में मानवीय भावनाओं, प्राकृतिक दृश्यों और धार्मिक जीवन की सूक्ष्मता को बारीकी से चित्रित किया गया है जो इन्हें अजूबे की आभा प्रदान करते हैं।अजंता और एलोरा की गुफाएं भारतीय कला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।

यहां की मूर्तियां, चित्रकला और नक्काशी उस समय के धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक जीवन को प्रस्तुत करती हैं। युनेस्को ने अजंता-एलोरा की गुफाओं को 1983 में विश्व धरोहर घोषित किया जो उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्वता को और भी स्पष्ट करता है।

एलोरा की गुफाएं:

एलोरा की गुफाएं यानी बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म से संबंधित कुल 34 गुफाएं हैं जिसमे बारह बौद्ध, सत्रह हिंदू और पांच जैन धर्म से संबंधित है। इन गुफाओं में भारतीय कला का अद्भुत संगम देखने को मिलता है जो इन्हें अजूबे बनाता है। सबसे प्रसिद्ध गुफा “कैलाश मंदिर” (गुफा संख्या 16) है जो की एक चट्टान को काटकर बनाया गया है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे भारतीय कला का अजूबा माना जाता है।

यह कैलाश मंदिर न केवल अपने आकार के कारण बल्कि जटिल नकाशी और वास्तुकला के कारण भी मन्त्रमुग्ध करता है जो इसे असाधारण अजूबा बनाता है। मंदिर के आंगन में देवता, राक्षसों और पौराणिक कथाओं के दृश्य चित्र किए गए हैं जो अत्यंत जीवंत प्रतीत होते दिखाई देते हैं।

कला का प्रदर्शन बौद्ध गुफाओं में भी दिखाई देता है, खासकर गुफा संख्या 10, जो कि “विश्वकर्मा गुफा” के नाम से जानी जाती है। यहाँ बौद्ध की एक विशाल मूर्ति और स्तूप हैं जो गुफा के आंतरिक भाग को आध्यात्मिक आभा प्रदान करते हैं और उसे अजूबे के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं।

6. हिमायूं का मकबरा:

हिमायूं का मक़बरा भारत के उल्लेखनीय ऐतिहासिक अजूबे में से एक है जो मुग़ल वास्तुकला से संबंधित है। यह मुग़ल सम्राट हिमांयू की याद में बनाया गया है जो न केवल एक सम्राट की अंतिम विश्राम स्थली है, बल्कि इसे मुग़ल साम्राज्य के विकास के वास्तुशिल्प संयंत्र के रूप में भी माना जाता है।

यह मक़बरा 1565 में शुरू हुआ और 1572 में हुमायूँ की विधवा बेगम हामिदा बानो बेगम द्वारा पूरा किया गया। इसे अंततः फ़ारसी वास्तुकार मीरक मिर्जा ग़ियास द्वारा पूरा किया गया, जिसमें फ़ारसी, तुर्की और भारतीय वास्तुकला के तत्व शामिल हैं। हुमायूँ का मक़बरा भारत का पहला मक़बरा है जिसे चार बाग़ की शैली में बनाया गया है जिसमें नदियां और फव्वारों का विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है। इस मक़बरे के निर्माण में गहरे लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है, जो इसकी भव्यता को बढ़ाता है और इसे एक चमत्कारिक अजूबे की आभा प्रदान करता है।

हिमायूं का मक़बरा 47 मीटर ऊंचाई और 9 मीटर आंतरिक चौड़ाई की संरचना में एक जलविहीन गुंबद की आकृति में ऊपर उठता है, जो एक अजूबे की आभा बढ़ाता है।

7. गोलकुंडा का किला:

हैदराबाद शहर से लगभग 11 किलोमीटर पश्चिम में स्थित गोलकुंडा का किला भारत के तेलंगाना राज्य में स्थित है। गोलकुंडा किला भारतीय, फारसी और इस्लामी शैलियों का संगम दर्शाता है। किले में प्रवेश करते ही इसके ऊंचे दरवाजे और मोटी दीवारें दिखती हैं जो इसे अजय बनाती थी। इस किले की दीवारें लगभग 10 किलोमीटर तक फैली हैं।

किले के चार मुख्य द्वार हैं जिनमें “फतेह दरवाजा” प्रमुख है। यह दरवाजा अपनी अनोखी ध्वनि प्रणाली के लिए प्रसिद्ध है। गोलकुंडा का किला तेलंगाना राज्य भारत में स्थित है जो हैदराबाद शहर से लगभग 11 किलोमीटर पश्चिमी सीमा से आनंद में स्थित है। यह किला एक प्रमुख उदाहरण है भारतीय इतिहास और वास्तुकला सुप्रसिद्ध शर्तों के बेनाम है, जिसे दुनिया भर में अपने समृद्ध धरोहर, सुरक्षा और प्राचीन हीरा व्यापार के लिए जाना जाता है। गोलकुंडा शब्द तेलगू भाषा में है जिसका अर्थ है “गोल पहाड़ी” (गोल्ला कोंडा) और “चरवाहों की पहाड़ी” तेलुगू में।

इतिहास में गोलकुंडा:

गोलकुंडा किले का निर्माण 12वीं शताब्दी में काकतीय राजवंश द्वारा कराया गया था जो वारंगल के शासक थे। 16वीं शताब्दी के मध्य में उत्तम शाही सुल्तानों ने किले का पूर्णनिर्माण करवाया और इसे अपनी राजधानी बना लिया। गोलकुंडा किला कुतुब वंश की समृद्धि का प्रतीक था, जिन्होंने इसे अपने शासन के दौरान और अधिक सुदृढ़ और भव्य बनाया।

वास्तुकला:

जो गोलकुंडा किला है, वह ईरानी फ़ारसी और इस्लामी शैलियों का मिलनसार है। जल्दी से इसकी ऊंची दरवाजे और मोट़ी दीवारें दिखते हैं जो उन्हें युद्ध के बाज नहीं बचने देता। किले की दीवारों का विस्तार लगभग 10 कि.मी. तक है। चार महत्वपूर्ण द्वार हैं जिनमें से “फ़तेह दरवाज़ा” प्रमुख है। इसलिए यह अद्भुत दरवाज़ा अपनी प्रकार की ध्वनिप्रणाली के लिए जाना जाता है।जहां प्रवेश द्वार पर एक ताल देने से ध्वनि किले के शीर्ष तक सुनाई देती थी। यह प्रणाली सुरक्षा व्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा थी। इसके अलावा किले में महल, मस्जिद शामिल हैं जो उस समय की शाही जीवन शैली को दर्शाते हैं तथा इस अजूबे की आभा बढ़ाते हैं।

हीरों का व्यापार:

गोलकुंडा दुनिया का एक सबसे बड़ा और बेहतरीन हीरों का केंद्र प्रसिद्ध केंद्र रहा जहां से कोहिनूर हीरा, होप हीरा आदि जैसे मूल्यवान रत्न यहीं से निकले हुए हैं। उसी समय गोलकुंडा विश्व का सबसे धनी शहर का अनुभवी शहर माना जाता था और यहीं से होने वाले हीरों का व्यापार ने इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्ध कर दिया है।

सांस्कृतिक महत्व

गोलकुंडा न केवल सामरिक और व्यावसायिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां भी सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और शाही दास्तानों का भी साक्षी रहा है। यहां हर साल विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और साउंड एंड लाइट शो आयोजित होते हैं जो इसके समृद्ध इतिहास को जीवंत बनाते हैं।

किले का पतन:

गोलकुंडा किले का पतन 1687 में मुगल सम्राट औरंगजेब के आक्रमण के बाद हुआ जब उसने किले को लगभग 8 महीने तक घेर रखा और अंततः जीत लिया। इस जीत के बाद उत्तम शाही वंश का अंत हो गया और गोलकुंडा पर मुगलों का अधिकार हो गया।

आज का गोलकुंडा:

आज का गोलकुंडा किला एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह किला न केवल भारतीय इतिहास की गाथा सुनाता है बल्कि यह भारत के गौरवशाली अतीत की याद भी दिलाता है। हर साल हजारों पर्यटक यहाँ आते हैं जो इसके वास्तुशिल्प और इतिहास से प्रभावित होते हैं। संक्षेप में गोलकुंडा किला भारतीय संस्कृति और शौर्य का प्रतीक है। इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व इसे भारत की सबसे महत्वपूर्ण अजूबे में से एक बनाता है।

8.सांची के स्तूप:

सांची के स्तूप भारतीय प्राचीन स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण हैं। यह स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है। यह बौद्ध धर्म के प्रारंभिक चरणों से संबोधित हैं। सांची के स्तूप न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि पुरातत्व और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।

इतिहास और निर्माण:

सांची के स्तूप का निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक महान ने करवाया था। अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और बौद्ध के अवशेषों को समझने के लिए विभिन्न स्रोतों का निर्माण करवाया। सांची का यह स्तूप भी इसी उद्देश्य से निर्मित किया गया है। इसका उपरी हिस्सा गोवंद के आकार में बना हुआ है जिसके ऊपर एक अंडाकार संरचना है।

इसका निर्माण बौद्ध के अवशेषों को सुरक्षित रखने और उनकी पूजा के लिए किया गया था। अशोक द्वारा निर्मित प्रारंभिक संरचना समय के साथ-साथ कई बार अपने निर्माण और विस्तार की प्रक्रिया से गुजरी। शुंग वंश के समय में स्तूप के आकार में वृद्धि की गई और इसे और अधिक बड़ा रूप दिया गया। इसके अलावा स्तूप के चारों ओर बने शानदार तोरणद्वार और रेलिंग भी जोड़ी गई है जिस से इस अजूबे की आभा और भी बढ़ा जाती है।

9. वृहदेश्वर मंदिर:

वृहदेश्वर मंदिर जिसे ‘बृहदेश्वर’ या “पेरुवुडैयार कोविल” भी कहा जाता है, तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित एक ऐतिहासिक शिव मंदिर है। यह मंदिर दक्षिण भारत की प्राचीन चोल साम्राज्य की महान अजूबे धरोहर में से एक है और अपनी अनोखी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। इसे यूनेस्को ने 1987 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है।

इतिहास:

वृद्धेश्वर मंदिर राज चोल प्रथम द्वारा 1003 से 1010 ईस्वी के बीच निर्मित हुआ था। इस मंदिर का निर्माण चोल साम्राज्य की सामरिक और सांस्कृतिक शक्ति को देखने और उसकी प्रशंसा करने के लिए किया था। इस मंदिर की योजना और संरचना उस समय की अद्वितीय अजूबे, शिल्प कौशल और स्थापत्य का उदाहरण है। यह मंदिर चोलों की धार्मिक समर्पण और वास्तुकला में उनके अजूबे कौशल को दर्शाता है।

वास्तुकला:

बृहदेश्वर मंदिर की सबसे विशेष बात इसकी विशालकाय गोपुरम (मुख्य टावर) है जिसे “विमान” कहा जाता है। यह लगभग 66 मीटर ऊंचा है और इसे ग्रेनाइट के विशाल पत्थरों से बनाया गया है। इस गोपुरम के शीर्ष पर एक विशाल पत्थर का गोवंद है जिसका वजन लगभग 80 टन है। इस संरचना की अजूबे बात यह है कि इस विशाल पत्थर को इतनी ऊंचाई पर कैसे रखा गया। इसके पीछे कई रहस्यमयी तकनीकें मानी जाती है।

मंदिर के गर्भ ग्रह में शिवलिंग की स्थापना की गई है जो लगभग 4 मीटर ऊंचा है। यह लिंगम भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है। मंदिर के भीतर नदी की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है जो 3 मीटर ऊंची है। यह प्रतिमा एक ही पत्थर से बनाई गई है और भारत की सबसे बड़ी नंदी प्रतिमाओं में से एक है। इसकी अजूबे भवयता इसे और भी अद्वितीय बनाती है।

धार्मिक महत्व:

वृहदेश्वर मंदिर के आंतरिक भाग को भगवान शिव की पूजा करने के निमित्त धर्मियों का भी अवसर रहता है। यह शिव जी के रूद्र रूप के पूजा के केंद्र के रूप में भी देखने को मिलता है और यहाँ नियमित संयमित रीति से पूजा, अभिषेक तथा सभी धार्मिक अनुष्ठान होने से लाखों भक्त इन्हीं धामों पर अपनी आस्था और विश्वास के चलते दर्शन की जज्बा इसीलिए करते हैं।

10. नालंदा विश्वविद्यालय:

नालंदा विश्वविद्यालय बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित है। उसकी उत्कीर्णता पांचवीं शताब्दी में हुई थी और उसे भारत के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थानों में से एक माना जाता है तो यह न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया में ऐसे महत्वपूर्ण गढ़ो में शामिल रहा जिनसे जानकारी प्राप्त होती है। इसके अलावा, यहां बौद्ध धर्म के अध्ययन के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध था। तर्क शास्त्र, आयुर्वेद, गणित, और भूगोल शास्त्र विषय पढ़ाए जाते थे यहां।

इतिहास:

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमार गुप्त ने की थी जो गुप्त साम्राज्य का एक प्रमुख शासक था। इसका विकास समय के साथ हुआ और यह एक विशाल परिसर में फैल गया, जिसमें लगभग 10000 छात्र और 2000 शिक्षक शामिल थे। नालंदा ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों से छात्रों को आकर्षित किया, जिसमें चीन, तिब्बत, जापान और मंगोलिया के छात्र शामिल थे। यह विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र का एक संक्षिप्त अजूबा था जो अपने समय में ज्ञान की सबसे ऊंची बुलंदियों तक पहुंच चुका था।

नालंदा के प्रमुख विद्वानों में भगवान बुद्ध, अचार्य नागार्जुन और बसु बंधु जैसे महान व्यक्तियों का नाम लिया जा सकता है। विश्वविद्यालय का शिक्षा प्रणाली और पाठ्यक्रम उस समय के लिए अत्यधिक विकसित था। यहां पर छात्रों को न केवल पाठ्यक्रम पाठ्य-पुस्तकों से बल्कि व्याख्यानों, चर्चाओं और समूह कार्यों के माध्यम से भी शिक्षित किया जाता था। इसी प्रकार नालंदा की शिक्षक प्रणाली भी अजूबा बातें हैं।

विनाश:

विश्वविद्यालय का पतन 12वीं शताब्दी में हुआ जब बख्तियार खिलजी ने इस पर आक्रमण किया। विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को नष्ट कर दिया गया और कई विद्वान और छात्र मारे गए। इस विनाश ने भारतीय शिक्षा प्रणाली पर एक गहरा धब्बा छोड़ा।

पुनर्निर्माण कार्य:

भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को 28 मार्च 2006 में पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की और 2014 में इसे एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में पुनर्जीवित किया। इस पुनर्निर्माण ने एक बार फिर नालंदा विश्वविद्यालय को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया और यह आज एक आधुनिक शिक्षा केंद्र के रूप में शिक्षा का अजूबा बन गया है, जो न केवल भारत बल्कि अन्य देशों के छात्रों को भी आकर्षित करता है।

नालंदा विश्वविद्यालय का वर्तमान स्वरूप:

आज नालंदा विश्वविद्यालय एक शैक्षिक संस्थान है जिसमें मानवीय, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान जैसे विभिन्न विषयों में स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रम उपलब्ध हैं। यह विश्वविद्यालय वैश्विक मानकों के अनुसार शिक्षा प्रदान करने का प्रयास कर रहा है।

निष्कर्ष:

भारत के यह 10 अजूबे न केवल देश के इतिहास में संस्कृति की पहचान है बल्कि वैश्विक धरोहर का भी हिस्सा है। इन स्थलों की यात्रा न केवल इतिहास का अनुभव है बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और वास्तुकला का प्रतीक भी है। इनकी सुरक्षा और संरक्षण की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इनकी सुंदरता और महत्व को समझ सके।

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